
लखनऊ. UP Elections 2022- 17 दिसबंर को लखनऊ के रमाबाई मैदान में भारतीय जनता पार्टी और निषाद पार्टी की संयुक्त रैली थी। मैदान में बड़ी संख्या में लोग आये, लेकिन निषाद समुदाय के लोगों की तादाद इसमें कहीं ज्यादा थी। सभी को यह कहकर रैली में लाया गया कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मंच से निषादों के आरक्षण की घोषणा करेंगे, लेकिन शाह ने मंच से आरक्षण के संदर्भ में एक भी शब्द नहीं बोला। इससे प्रदेश के कोने-कोने से आये आरक्षण समर्थक भड़क गये और रैली में ही हंगामा करने लगे। यहां तक की होर्डिंग्स और पोस्टर भी फाड़ दिये। साफ तौर पर कहा कि आरक्षण नहीं तो वोट नहीं। लोगों ने कहा कि चुनाव से पहले आरक्षण की घोषणा नहीं होगी तो अकेले संजय निषाद ही बीजेपी के साथ जाएंगे, निषाद समुदाय इस गठबंधन को वोट नहीं करेगा। परेशान संजय निषाद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा कहा कि लोगों को आरक्षण मिलने की बात कहकर रैली में लाया था। अगर निषाद समाज का वोट चाहिए तो भाजपा को पहले मुद्दे हल करने होंगे।
‘निर्बल भारतीय शोषित हमारा आम दल’ यानी निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद हैं। उनकी राजनीति का प्रमुख मुद्दा निषादों, निषादों के मुद्दों को लेकर वह राजनीति कर रहे हैं। अगर निषाद ही उनसे छिटक गया तो संजय निषाद और उनकी पार्टी के आस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा। मौका देख यूपी की 165 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रहे बिहार की वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने कहा कि संजय निषाद ने समाज के लिए कुछ नहीं किया है बल्कि निषादों को ठग रहे हैं। सहनी ने दावा किया कि 17 दिसंबर को लखनऊ में निषाद रैली से साफ हो गया है कि निषाद वीआईपी के साथ हैं। निषादों को आरक्षण का भरोसा देकर लखनऊ रैली में बुलाया गया लेकिन, रैली में किसी ने भी आरक्षण के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा। उनके मुंह से आरक्षण का ‘अ’ तक नहीं निकला। आने वाले समय में निषाद समाज इसका जवाब देगा।
निषाद आरक्षण है प्रमुख मांग
निषाद पार्टी की प्रमुख मांग है निषादों को अनुसूचित जाति का आरक्षण मिले। इसी को लेकर 7 जून 2015 को गोरखपुर से सटे सहजनवां के कसरावल में निषादों का बड़ा आंदोलन हुआ था। डॉ. संजय निषाद निषादों के बड़े नेता बनकर उभरे। 2016 में पार्टी का गठन हुआ। 2017 में पार्टी ने पहला चुनाव यूपी विधानसभा और 2018 गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा। वर्तमान में संजय निषाद के सुपुत्र प्रवीण निषाद संत कबीर नगर से सांसद हैं।
पूर्वांचल की 70 सीटों पर निषादों का प्रभाव
निषाद खुद को एक नाविक राजा निषादराज का वंशज मानते हैं, जिन्होंने वनवास के दौरान भगवान राम को सीता और भाई लक्ष्मण के साथ गंगा पार कराने में मदद की थी।उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में निषादों की भागीदारी 14 फीसदी है। निषाद समुदाय में सहनी, बिंद, कौल और तियार जैसी 22 उपजातियां शामिल हैं, जो सामूहिक रूप से गंगा, यमुना और अन्य नदियों के किनारे वाले इलाकों में खासा प्रभाव रखती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के भदोही, जौनपुर, गोरखपुर, वाराणसी, बलिया, देवरिया से बस्ती तक 70 निर्वाचन क्षेत्रों में निषाद वोटर हार-जीत तय करने की क्षमता रखते हैं। बिहार में इस समुदाय के सबसे बड़े नेता पूर्व सांसद जय नारायण प्रसाद निषाद थे। उत्तर प्रदेश में फूलन देवी और समाजवादी पार्टी के नेता विशंभर प्रसाद निषाद रहे हैं। अब संजय निषाद और बिहार की वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी इस समुदाय पर पकड़ होने का दावा कर रहे हैं।
..तो भाजपा को होगा नुकसान
2017 का विधानसभा चुनाव हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव निषादों समुदाय ने बीजेपी को पूर्वांचल में बड़ी जीत दिलाई है। ऐसे में अगर निषाद वोट बंटता है तो 2022 में बीजेपी की संभावनाओं को बड़ा नुकसान हो सकता है। भाजपा लंबे समय से निषादों को साथ जोड़े रखने की जुगत में है। कभी निषादराज साम्राज्य की राजधानी रही श्रृंगवेरपुर में निषादराज की 180 फुट ऊंची प्रतिमा भी लगाई जा रही है। यूपी भाजपा के उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने ही निषादों से किए अपने वादे पूरे किए हैं। निषादराज की प्रतिमा के अलावा पार्टी ने जयप्रकाश निषाद को राज्यसभा भी भेजा है।