
नई दिल्ली. कोरोना वायरस नया रूप एक बार फिर लोगों को डरा रहा है। करीब 18 महीने पहले चीन के वुहान में कोरोना वायरस मिला था। कुछ वक्त बाद इसका एक वेरिएंट सामने आया जिसे अल्फा नाम दिया गया, फिर डेल्टा आया और अब ओमिक्रॉन। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमिक्रॉन को डेल्टा से ज्यादा संक्रामक माना है, लेकिन यह भी कहा है कि ये डेल्टा के मुकाबले कितना घातक है यह जानने में अभी वक्त लगेगा। ओमिक्रॉन संक्रामक इतना है कि महीने भर में ही यह 70 से अधिक मुल्कों में फैल चुका है। भारत के कई राज्यों में भी ओमिक्रॉन मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। डब्ल्यूएचओ भी इसकी संक्रामक रफ्तार से चिंतित है। तो आइए जानते हैं कि कोरोना कैसे बनाता है अपना नया वेरिएंट और यह कितना खतरनाक होता है?
कोरोना वायरस जब किसी व्यक्ति को संक्रमित करता है तो अपने विस्तार के लिए अपनी ही नकल बनाता है। यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन कई बार वायरस नकल करने में गड़बड़ी कर देता है, जिसे हम म्यूटेशन कहते हैं। औऱ जब वायरस में लगातार इतने म्यूटेशन होते हैं कि वह पहले से अलग दिखने लगता है तो उसे नया वेरिएंट कहते हैं। जैसे पहले उल्फा, फिर डेल्टा और अब ओमिक्रॉन।
काफी संक्रामक है ओमिक्रॉन
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जून-जुलाई में जब डेल्टा की लहर आई थी तब दोबारा संक्रमण की दर में सामान्य थी, लेकिन ओमिक्रॉन शुरुआत से ही तेजी से लोगों को संक्रमित कर रहा है। जिसका सीधा मतलब है कि यह वेरिएंट लोगों की उस इम्यूनिटी को भी तार-तार कर दे रहा है जो जो लोगों को पहले हुए कोरोना संक्रमण के दौरान स्वस्थ होने के बाद मिली थी।
इम्यून सिस्टम को रखें मजबूत
विशेषज्ञ कहते हैं कि वायरस किसी व्यक्ति को तभी संक्रमित कर सकता है, जब उसे इम्यून सिस्टम की कमजोरी मिल गई हो। जानकारों का कहना है कि हमारा इम्यून सिस्टम इस वायरस के सैंकड़ों हिस्से पहचान सकता है, लेकिन स्पाइक प्रोटीन में मौजूद छह हिस्से संक्रमण रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अगर इनमें बदलाव आया तो हमारा इम्यून सिस्टम वायरस को नहीं पहचान पाएगा। ओमिक्रॉन में इनमें से तीन में बदलाव हैं, इसलिए यह पहले के वेरिएंट के मुकाबले कहीं अधिक संक्रामक है। दुनिया भर के विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि संक्रमण के मामले में ओमिक्रॉन कहीं डेल्टा को पीछे छोड़ कोरोना वायरस का डोमिनेन्ट वेरिएंट बन जाए।
… तो खुद ही खत्म हो जाएगा कोरोना का असर?
इसका मतलब साफ है कि इम्युनिटी अच्छी है तो काफी हद तक ओमिक्रॉन से लड़ने में मदद मिल सकती है। ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर किसी ने वैक्सीन की दोनों डोज ली है या फिर कोरोना के संक्रमण से ठीक हुए हैं तो वह ओमिक्रॉन से लड़ने में अपेक्षाकृत बेहतर हैं। जानकारों का कहना है कि ऐसी प्रबल संभावना है कि एक वक्त के बाद लोगों का शरीर खुद ब खुद इससे लड़ने का अभ्यस्त हो जाए, क्योंकि बचपन से लेकर अब तक हम सैंकड़ों वायरस के संपर्क में आते हैं जिनसे हम एक बारगी बीमार तो हो जाते हैं, लेकिन जब दोबारा इनके संपर्क में आते हैं तो हमें संक्रमण का पता तक नहीं चलता। ऐसे में पूरी संभावना है कि हो सकता है कि वक्त के साथ ये वायरस ऐसा बन जाए जो बड़ी तबाही न मचाने में सक्षम न हो। हालांकि, इसमें कुछ साल का वक्त लग सकता है। और हम उम्मीद भी करते कि ऐसा ही हो।