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अपने कुल देवता की नगरी में ही क्यों नहीं दौड़ रही अखिलेश यादव की साइकिल? जानें वजह

मथुरा. UP Vidhan Sabha Chunav 2022: भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) को यदुवंशी कुल का माना जाता है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भगवान श्रीकृष्ण को अपना कुल देवता भी बता चुके हैं। अखिलेश ने तो यहां तक कह दिया है कि उनके सपने में भगवान श्रीकृष्ण आ रहे हैं और कह रहे हैं कि इस बार सपा की सरकार बनेगी। लेकिन बावजूद उसके चाहे मुलायम सिंह यादव हों या फिर उनके पुत्र अखिलेश यादव, दोनों को मथुरा में जीत नहीं मिल सकी है। तो आइये जानते हैं कि आखिर वह वजह क्या है, जिसके चलते सपा की साइकिल कान्हा की नगरी में नहीं दौड़ पा रही है।


कान्हा की नगरी में अब तक नहीं जीती सपा
समाजवादी पार्टी का गठन साल 1992 में हुआ था। तब से तीन बार मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और एक बार अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहे, लेकिन कृष्ण नगरी मथुरा से सपा की साइकिल पर सवार होकर कोई भी नेता विधानसभा नहीं पहुंच सका। साल 1992 से लेकर 2019 तक हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सपा न तो मथुरा में किसी सीट पर विधायक बना और न ही कभी कोई सांसद चुना गया है। मथुरा में जीत के लिए मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी के साथ हाथ मिलाकर इस बार नया सियासी प्रयोग करने की कवायद की है।

चुनौती इस बार भी आसान नहीं
यूपी विधानसभा चुनाव के पहले फेस में ही भगवान श्रीकृष्ण की नगरी यानी मथुरा में भी वोटिंग होनी है और इस बार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) के साथ मिलकर मथुरा के चुनावी मैदान में उतरे हैं। सपा मथुरा की दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जबकि तीन सीटों पर आरएलडी मैदान में है। हालांकि इसके बाद भी सपा-आरएलडी (SP-RLD) के सामने चुनौती आसान नहीं है, क्योंकि उसके सामने बीजेपी, बसपा और कांग्रेस से इस बार भी कड़ी चुनौती है। हालांकि, मांट विधानसभा सीट पर सपा और आरएलडी दोनों ही पार्टियां फ्रेंडली चुनावी मैदान में है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार सपा को क्या सियासी सफलता मिलती है।

जाट और ब्राह्मण तय करते हैं हार-जीत
दरअसल मथुरा जाट और ब्राह्मण बहुल जिला माना जाता है. यहां पर सपा का कोर वोटबैंक यादव और मुस्लिम बड़ी संख्या में नहीं है। मथुरा जिले में यादव समाज के करीब 17 गांव और 24 मजरा हैं। यहां मतदाताओं की बात करें तो जिले में करीब 70 से 80 हजार यादव वोटर जबकि मथुरा और वृंदावन सीट पर 15 से 20 हजार यादव समाज का वोट है। मथुरा सीट पर तो मुस्लिम वोटर है, लेकिन बाकी दूसरी सीटों पर बहुत बड़ी संख्या में नहीं है।


सियासी समीकरण पक्ष में नहीं
मथुरा (Mathura) जिले के सियासी समीकरण पक्ष में नहीं होने के चलते समाजवादी पार्टी को यहां सफलता नहीं मिल पाती है। मथुरा के जातीय समीकरण को देखें तो जाट वोटर यहां निर्णायक भूमिक में है, जो सभी पांचों सीटों पर अपना असर रखता है। इसी के चलते मथुरा रालोद का गढ़ माना जाता है। जाट के बाद ब्राह्मण वोटर यहां अहम भूमिका में है तो ठाकुर वोटर भी कम नहीं है। ठाकुर-ब्राह्मण कैंबिनेशन के साथ अन्य ओबीसी जातियों के वोटों के दम पर बीजेपी पिछले चुनाव में पांच में से चार सीटें जीतने में कामयाब रही थी।


मथुरा जिले में कुल पांच विधानसभा सीटें
मथुरा जिले में कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें छाता, बलदेव, गोवर्धन, मथुरा सदर और मांट सीट है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने पांच से चार सीटों पर जीत दर्ज की थी और एक सीट मांट बसपा को मिली थी। बीजेपी ने इस बार मथुरा जिले में अपने चार में तीन विधायकों को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है जबकि गोवर्धन सीट से जीते विधायक का टिकट काट दिया है। बीजेपी ने मथुरा से श्रीकांत शर्मा, छाता से चौधरी लक्ष्मी नारायण, बलदेव से पूरन प्रकाश, गोवर्धन से ठाकुर मेघश्याम सिंह और मांट से राजेश चौधरी को टिकट दिया है। गोवर्धन से पिछले चुनाव में बीजेपी के टिकट से जीते कारिंदा सिंह का टिकट काट दिया गया है। इसी तरह मांट क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर पिछला चुनाव लड़े एसके शर्मा इस बार मौका नहीं मिल सका है।


इनको मिला टिकट
सपा-आरएलडी गठबंधन (SP-RLD Alliance) के तहत रालोद ने छाता से तेजपाल सिंह, गोवर्धन से प्रीतम सिंह, बलदेव से बबीता देवी और मांट से योगेश नौहवार को अपना प्रत्याशी बनाया है। हालांकि, मांट सीट से सपा ने भी संजय लाठर को प्रत्याशी घोषित कर दिया है और मथुरा सीट पर हाथरस जिले की सादाबाद के पूर्व विधायक देवेंद्र अग्रवाल को कैंडिडेट बनाया है। वहीं, बसपा और कांग्रेस ने भी अपने-अपने कैंडिडेट घोषित कर दिए हैं। कांग्रेस ने मथुरा सीट पर पूर्व विधायक प्रदीप माथुर को उतारा है।


तो क्या इस बार काम करेगा दांव?
आपको बता दें कि समाजवादी पार्टी के गठन के बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से पहली बार सपा प्रत्याशी के रूप में जय प्रकाश यादव चुनाव लड़े, जिन्हें बसपा का समर्थन भी हासिल था। इसके बावजूद वो जीत नहीं सके। 2012 और 2017 के चुनाव में मथुरा की मांट विधानसभा सीट से अखिलेश यादव के नजदीकी संजय लाठर भी चुनाव लड़े, लेकिन उनके हाथ भी जीत नहीं लग सकी। हालांकि, संजय लाठर 51 हजार वोट हासिल करने में कामयाब रहे थे। इसीलिए फिर से उन्हें चुनावी मैदान में उतारा है। ऐसे में देखना है कि इस बार मथुरा में सपा का खाता खुलता है या फिर यहां इस बार भी अखिलेश यादव को निराश ही मिलने वाली है?