
लखनऊ. यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में सजा की दर में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अतिरिक्त महानिदेशक (अभियोजन) आशुतोष पांडे ने कहा कि 2022 में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध की सभी श्रेणियों में सजा दर में वृद्धि हुई है। उन्होंने इसके लिए पोस्ट-मॉर्टम, फोरेंसिक और डीएनए रिपोर्ट सहित अदालत में की गई सभी प्रविष्टियों के डिजिटलीकरण को जिम्मेदार ठहराया, जिससे अदालतों से दोष ज्यादा देरी के बगैर सिद्ध करने में मदद मिली।
पांडे ने कहा, “हमने चार्जशीट स्तर पर कानूनी राय अनिवार्य कर दी है, गवाहों के बारे में डेटा फीड करना और निगरानी करना, जबकि आरोप तय करने, रिमांड, जमानत रद्द करने, गवाह परीक्षा, शत्रुतापूर्ण गवाह और अंतिम तर्क जैसे महत्वपूर्ण चरणों के लिए एसओपी बनाए गए हैं।”
अधिकारी ने सजा में वृद्धि के लिए अन्य कारकों को भी जिम्मेदार ठहराया, जैसे कम गवाहों वाले मजबूत मामलों के चयन और करीबी निगरानी और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012 जैसे मामलों की घटनाओं में अभियोजकों की भागीदारी।
दी गई ट्रेनिंग-
उन्होंने कहा कि यूपी में हमने 900 अभियोजन अधिकारियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षित किया है और सरकार द्वारा प्रदान किए गए बुनियादी ढांचे और तकनीकी प्रोत्साहन ने हमें केवल एक क्लिक पर 56 लाख प्रविष्टियां देने में मदद की है।
मुख्तार, विजय मिश्रा जैसे माफियों को मिली सजा-
एडीजी हाल ही में देश में इंटर-ऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (आईसीजेएस) के तहत अभियोजन से संबंधित उच्चतम प्रविष्टि प्राप्त करने वाले उत्तर प्रदेश का जिक्र कर रहे थे, जिसके लिए राज्य को एनसीआरबी द्वारा सम्मानित किया गया था। पांडे ने यह भी कहा कि पुलिस और अभियोजन पक्ष के लगातार प्रयासों के कारण हाल ही में मुख्तार अंसारी, विजय मिश्रा, मुजफ्फरनगर के संजीव उर्फ जीवा, लखनऊ में बबलू श्रीवास्तव और नोएडा में सुंदर भाटी और सिंहराज भाटी जैसे माफिया-राजनेताओं को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
यह रहे आंकड़े-
पांडे ने कहा कि 2022 में 1,180 मामलों में हत्या के मामलों में सजा हुई। इसी प्रकार, इसी अवधि में लूट के 745 मामलों में और 200 गोकशी के मामलों में दोषसिद्धि हुई। राज्य के डीजीपी डीएस चौहान ने कहा कि उन्होंने पुलिस, जेल और अभियोजन पक्ष के बीच एक बेहतर तालमेल विकसित करने के लिए एक भविष्यवादी रणनीति तैयार की है, ताकि आपराधिक न्याय प्रणाली को स्वचालित करने के लिए प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग किया जा सके और न्यायपालिका को मुकदमे में तेजी लाने में मदद मिल सके, जिससे बेहतर सजा हो सके।