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टीबी के प्रति भेदभाव मिटाने की अलख जगा रहीं टीबी चैंपियन नेहा

प्रयागराज : टीबी को हराकर टीबी चैम्पियन बनी नेहा (27 वर्ष) बीते आठ माह से लगातार टीबी से जुडी भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास कर रही हैं। नेहा टीबी मरीजों के घर जाकर उनके परिवार को मरीज से भेदभाव न करने की सलाह देते हुए मरीज को इलाज के लिए परामर्श देने का काम कर रही हैं। अभी तक लगभग 76 क्षय रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों को नेहा सलाह और परामर्श दे चुकी हैं। इनमें से 27 टीबी के मरीज टीबी को हरा कर स्वस्थ हो चुके हैं।

नेहा बताती हैं कि “मैं टीबी मरीज व उसके परिवार के सदस्यों से बात करती हूँ इससे मुझे घर का माहौल समझने का मौका मिलता है। टीबी मरीज के लिए जितनी जरूरी दवा और पोषण है, उतना ही जरूरी घर व आस पास का सकारात्मक माहौल है। यदि माहौल अच्छा है तो बीमारी से उबरना ज्यादा आसान हो जाता है। हमें यह समझना होगा कि “टीबी मरीजों को समाज से तिरस्कार नहीं प्यार चाहिए” इसलिए उसके हौसले को न टूटने दें। जब मुझे टीबी थी तब मुझे समाज से तिरस्कार मिला इसलिए मैंने टीबी को हराने के बाद यह ठान लिया कि अब मैं टीबी मरीजों के हौसले को मजबूत करने का कार्य करूंगी।

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ॰ एके तिवारी ने बताया कि “टीबी को लेकर आज भी लोगों में तमाम तरह की भ्रांतियां हैं। इसके चलते टीबी मरीज को अक्सर भेदभाव व तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। समाज का यह दोयम दर्जे का व्यवहार इनमें तनाव और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को बढ़ा रहा है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत हम सभी को इसपर विचार करने की जरूरत है। हमें यह समझना होगा की टीबी मरीज से दूरी बनाना या भेदभाव करना सही नहीं है। जरूरत है तो पूरी सुरक्षा बरतते हुए उनको भावनात्मक सहयोग प्रदान करने की। 

उन्होने बताया कि “टीबी दो तरह की होती है। एक पल्मोनरी टीबी और दूसरा एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी। यह जानना बहुत ही जरूरी है की केवल फेफड़ों की टीबी यानी पल्मोनरी टीबी से संक्रमण फैलने का खतरा है। बाकी किसी अन्य एक्स्ट्रापल्मोनरी (शरीर के किसी अन्य हिस्से में) टीबी से नहीं। पल्मोनरी टीबी का मरीज खांसते-छींकते समय सभी प्रोटोकाल का पालन करे और मास्क लगाकर रहे तो इसके संक्रमण की गुंजाइश भी न के बराबर रहती है।

 सामाजिक भेदभाव का मानसिक स्वास्थ्य पर असर

नैदानिक मनोचिकित्सक डॉ॰ ईशान्या राज ने कहा कि “बीमारी चाहे कोई भी हो, उसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता ही है। चाहे उसका असर लंबे समय के लिए रहे या थोड़े समय के लिए। कई टीबी मरीज़ों में पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां मौजूद हो सकती हैं, जो टीबी हो जाने से और बढ़ जातीं हैं। बहुत से टीबी के मरीज़ डिप्रेशन के शिकार हैं और एमडीआर टीबी (टीबी का एक और गंभीर रूप) के मामलों में डिप्रेशन ज़्यादा है। टीबी से जुड़े सामाजिक भेदभाव मरीज़ की मानसिक स्थिति पर बुरा असर डालते हैं।