लखनऊ. Deaflympics 2024- खेलोगे कूदोगे होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब… हाल के वर्षों में यह पुरानी कहावत गलत साबित हुई है… देश दुनिया में अब जिस तरह से काबिल खिलाड़ियों पर धनवर्षा होती है, गार्जियन भी अपने बच्चों को धड़ल्ले से स्पोर्ट्स में दाखिला दिला रहे हैं… लेकिन, खबरदार- हमारे देश में स्पोर्ट्स का मतलब क्रिकेट के इर्द-गिर्द ही है, क्योंकि आईपीएल और कबड्डी जैसे खेलों में एक-एक खिलाड़ी पर लाखों-लाखों रुपए लुटाये जा रहे हैं, लेकिन वहीं दूसरे स्पोर्ट्स को कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है। भले ही खिलाड़ी की इंटरनेशनल पहचान क्यों न हो? ऐसे में सवाल तो बनता है कि क्या देश में क्रिकेट अलावा अन्य किसी खेल के खिलाड़ियों की कोई कीमत नहीं है? अगर है तो फिर अदर गेम्स के खिलाड़ियों के साथ इतना सौतेला व्यवहार क्यों?
दूसरी बार ‘ओलिम्पिक’ खेलेंगी अर्चना पांडेय
उत्तर प्रदेश ही नहीं यह पूरे देश के गर्व की बात है कि डेफ ओलिम्पिक के लिए हमारे देश की चार लड़कियों का सिलेक्शन हुआ है, जिनमें से एक हैं लखनऊ की टेबिल टेनिस खिलाड़ी अर्चना हैं। वह दूसरी बार ओलम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी। एक गरीब परिवार की बेटी के लिए यह किसी सपने से कम नहीं है। खासकर उस लड़की के लिए जिसे बचपन से सुनने में दिक्कत है। अब वह कान में मशीन लगाकर सुनती है। पिता ने किसी तरह पाल-पोस कर बड़ा किया। बेटी की खुशियों के लिए उसकी शादी कर दी, लेकिन पति उसे छोड़ गया। इस बीच न तो उसे सरकार की तरफ से कोई मदद मिली। अर्चना को भी नहीं समझ आ रहा है कि उसे खुद को साबित करने के लिए अब और क्या करना होगा? नतीजन गरीबी और मुफलिसी में जी रही अर्चना का हौसला पस्त हो गया। रही-सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी। अब तक वह पूरी तरह टूट चुकी थी। परिजनों ने भी उसे और खेलने से मना कर दिया। कोच पराग अग्रवाल अपने स्टूडेंट की काबिलियत को जानते थे, इसलिए वह अर्चना के परिजनों से मिले और एक बार फिर उसे खिलाने की गुजारिश की। उन्होंने कहा कि अर्चना को चर्चित खिलाड़ियों की तरह न सही, पर कम से कम स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी मिल जाये। कोच और अर्चना की मेहनत रंग लाई और उसने भारत की नंबर वन खिलाड़ी सुरभि घोष को हराकर डेफ ओलम्पिक में अपनी जगह बनाई है। 24वें डेफ ओलिम्पिक ब्राजील में 1-15 मई के बीच खेले जाएंगे।
सवाल तो बनता है?
ऐसे में सवाल तो बनता है? कोई खिलाड़ी खुद को साबित करने के लिए क्या करे? श्रेष्ठता साबित करने लिए क्या ओलम्पिक के अलावा भी कोई फ्लेटफॉर्म है? अगर नहीं तो फिर स्पोर्ट्स कोटा किन खिलाड़ियों के लिए रिजर्व है? क्या ओलिम्पिक खेल चुकी खिलाड़ी इतनी योग्यता नहीं रखती कि स्पोर्ट्स कोटे में उसे एक अदद नौकरी दे दी जाए?
खेल-खिलाड़ियों के लिए सरकार ने बढ़ाया बजट
स्पोर्ट्स और स्पोर्ट्समैन को प्रमोट करने के लिए सरकार तमाम दावे करती है। बजट में भी भारी भरकम राशि आवंटित की जाती है। इस बार भी यानी 2022-2023 के लिए खेल का बजट बढ़ा दिया गया है। साल 2021-2022 में यह 2757.02 करोड़ रुपये था, जो इस बार बढ़कर 3062.60 करोड़ रुपये हो गया है। इस बजट से खेल के साथ-साथ होनहार खिलाड़ियों को आर्थिक मदद की जाती है। ताकि उनकी राह में पैसों की तंगी न आये। इसके अलावा कई विभागों में स्पोर्ट्स कोटे से प्रतिभावान खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी दी जाती है, ताकि खेल के साथ-साथ उनका जीवन भी चलता रहे। खिलाडियों की प्रतिभा को निखारने के लिए मोदी सरकार ने 2018 में खेलो इंडिया अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत गांव-गांव से प्रतिभावान खिलाड़ियों को बड़े स्तर पर प्रमोट किया जाता है। लेकिन, अर्चना जैसी ऊर्जावान खिलाड़ियों तक मदद क्यों नहीं पहुंच पाती, सबसे बड़ा सवाल तो यही है।
प्रतिभावान खिलाड़ियों को चाहिए सरकारी मदद
अर्चना पांडेय ने एक नहीं बल्कि दो बार ओलम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व किया है। ओलिम्पिक में ऐसा करने वाली वह यूपी की पहली महिला खिलाड़ी हैं। बावजूद वह आर्थिक तंगी में गुजर-बसर कर रही हैं। ऐसे में सवाल तो बनता है? कोई गार्जियन अपने बच्चे को स्पोर्ट्स में क्यों डाले? खासकर ऐसे स्पेशल बच्चे जो लक्ष्य के बीच में दिव्यांगता को आड़े नहीं आने देते। लेकिन बिना सरकारी मदद के वह ज्यादा सरवाइव नहीं कर सकते।