
दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वेश्यावृत्ति के एक मामले पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। जिससे वेश्यावृत्ति का कार्य कर रही महिलाओं के हक की बात कही गई। कोर्ट ने कहा कि वेश्यावृत्ति भी एक प्रोफेशन, लेकिन वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को कोर्ट ने आदेशित किया कि वे सेक्स वर्कर्स के काम में हस्तक्षेप न करे। यदि सेक्स वर्क करने वाली महिला बालिग है और वह सहमति से यह कार्य कर रही हैं, तो उनपर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। सेक्स वर्कर भी कानून के तहत गरिमा व समान सुरक्षा के हकदार है। सुप्रीम कोर्ट कोरोनाकाल के दौरान सेक्स वर्कर्स को आई परेशानियों को लेकर दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट की बेंच में शामिल जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस बीआर गवई ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को सुरक्षित करने को लेकर दिशा निर्देश भी जारी किए व कहा कि सेक्स वर्कर्स भी देश के नागरिक हैं।
पुलिस हो सेक्स वर्कर के अधिकारों के प्रति संवेदनशील –
कोर्ट ने कहा कि यदि सेक्स वर्कर के साथ किसी भी प्रकार का अपराध होता है, तो तुरंत उसे मदद उपलब्ध कराई जाएं। यदि उसका यौन उत्पीड़न होता है, तो उसे मेडिकल मदद के साथ वह सभी सुविधाएं दी जाए जो एक यौन उत्पीड़न पीड़िता को दी जाती है। कोर्ट ने आगे कहा कि कई मामलों में यह देखा गया है कि पुलिस सेक्स वर्कर्स के प्रति क्रूर व हिंसक रवैया अख्तियार करती है, जो गलत है। पुलिस व एजेंसियों को भी सेक्स वर्कर के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। उनके साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए। मौखिक या शारीरिक रूप से गलत व्यवहार करने से बचना चाहिए।
गैरकानूनी है वेश्यालय चलाना
कोर्ट ने हालांकि कहा कि वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है, लेकिन यदि कोई अपनी मर्जी से प्रॉस्टीट्यूट बनता है, तो वह अवैध नहीं है। इस देश के प्रत्येक नागरि को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने का हक है। अगर पुलिस को किसी वजह से उनके घर पर छापेमारी करनी भी पड़ती है तो सेक्स वर्कर्स को गिरफ्तार या परेशान न करे। साथ ही यदि महिला एक सेक्स वर्कर है, तो सिर्फ इस कारण उसके बच्चे को उससे नहीं किया जा सकता। अगर बच्चा वेश्यालय या सेक्स वर्कर के साथ रहता है इससे यह साबित नहीं होता कि वह बच्चा तस्करी कर लाया गया है।