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Raksha Bandhan 2022: कौन हैं शनिदेव की बहन भ्रद्रा, जन्म लेते ही जिन्होंने मचाया था प्रलय, रक्षाबंधन पर मंडरा रहा उनका साया

Raksha Bandhan 2022: भाई बहन के रिश्ते का सबसे पवित्र त्योहार रक्षाबंधन माना जाता है। रक्षा बंधन भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक कहा जाता है। इस बार रक्षाबंधन की तिथि और समय को लेकर लोगों के बीच काफी असमंजस भी है। इसका कारण शनिदेव की बहन भद्रा हैं। भद्रा का साया लगने के कारण लोग सोच में हैं कि वह रक्षा बंधन 11 अगस्त मनाएं या फिर 12 अगस्त को।

जानें राखी का सही मुहुर्त
Raksha Bandhan 2022 Muhurat: लखनऊ के आचार्य रमाकांत पाण्डेय के मुताबिक इस साल रक्षाबंधन 11 अगस्त 2022 को पड़ेगा, जिसमें अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा में भद्रा दोष बना हुआ है। पंचांग के मुताबिक 11 अगस्त 2022 को सूर्योदय के साथ चतुर्दशी तिथि रहेगी और इस दिन सुबह 10:58 से पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी और इसी के साथ भद्रा भी लग जाएगा। जो कि इस दिन रात को 8:50 बजे तक रहेगी। चूंकि शास्त्रों में भद्राकाल में श्रावणी पर्व को मनाने के लिए निषेध किया गया है, ऐसे में रात्रि 08:50 के बाद ही राखी बांधना शुभ रहेगा। भद्रा में राखी बांधना शुभ नहीं जाएगा।

रक्षाबंधन 2022 पर भद्रा काल (Raksha Bandhan Bhadra)
राहुकाल-11 अगस्त, दोपहर 2 बजकर 9 मिनट से 3 बजकर 47 मिनट तक
रक्षा बंधन भद्रा समाप्त- रात 08 बजकर 24 मिनट से 09 बजकर 47 मिनट

इस समय नहीं लगेगा भद्रा
दअसल रक्षाबंधन के दिन लगने वाली भद्रा का निवास पृथ्वी लोक पर न होकर पाताल लोक पर है। रक्षा बंधन के दिन घटित होने वाली भद्रा वृश्चिका भद्रा हैं। सर्पिणी भद्रा नहीं होने के कारण यदि बहुत मजबूरी हो तो बहनें अपने भाई को सायंकाल 06:08 से रात्रि 08:00 बजे के बीच भी राखी बांध सकती हैं।

भद्रा के बारे में जानें
धार्मिक पुराणों में भद्रा की कथा के मुताबिक, भद्रा सूर्यदेव की बेटी और शनि देव की बहन हैं। जैसे शनि का स्वभाव थोड़ा सख्त माना जाता है वैसे ही भद्रा भी स्वभाव से कड़क मिजाज हैं। भद्रा को काफी क्रोधी स्वभाव का बताया गया है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक भद्रा शनिदेव की बहन हैं। उनका रंग काला है, बाल लंबे और दांत बड़े-बड़े हैं। जन्म लेते ही भद्रा संसार को खाने के लिए दौड़ पड़ी थीं। उन्होंने यज्ञों को नष्ट कर दिया और शुभ कार्यों में बाधा बनीं थीं। ये सब देखकर देवता भी डर से कांपने लगे थे। धर्म ग्रंथों के मुताबिक तब ब्रह्मा जी ने भद्रा को करणों में सातवां स्थान दिया, जिसे विष्टी भी कहा जाता है। इनके स्वभाव को काबू करने के लिए ही ब्रह्माजी ने उन्हें पंचांग में विष्टि करण के रूप में जगह दी। दरअसल भद्रा देवी एक समय पूरे संसार को अपना निवाला बनाने वाली थीं। इसी वजह से वह सभी कार्यों में बाधा डालने लगीं और इस बार रक्षाबंधन पर भी भद्रा का साया रहेगा।