
Uniform Civil Code के संबंध में 29 अप्रैल को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया ने पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को लिखा था पत्र। जानें- वे खास 10 बिंदु जिनकी ओर कराया ध्यान आकृष्ट.
महोदय,
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया यूनिफार्म सिविल कोड के सम्बंध आपसे निम्न निवेदन प्रेषित कर रहा है।
1- देश में समस्त धार्मिक समूहों को अपने धार्मिक रीतिरिवाज के अनुसार शादी विवाह की संवैधानिक अनुमति है।
2- मुस्लिम समुदाय सहित अनेक समुदायों को अपने धार्मिक विधि के अनुसार विवाह तलाक के अधिकार भारत की स्वतंत्रता के पूर्व से प्राप्त है,मुस्लिम समुदाय को 1937 से इस सम्बंध में मुस्लिम एप्लिकेशन एक्ट के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है।
3- स्वतंत्रता उपरांत भी संविधान सभा मे इस सम्बंध में हुई बहस में प्रस्तावना समिति के चेयरमैन बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि सरकार इसे धार्मिक समुदाय पर छोड़ दे और सहमति बनने तक इसे लागू न करे।
4- मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस सम्बंध में कहना चाहता है कि यूनिफार्म सिविल कोड पर सभी धर्मिक समूहों के संगठनों पर सर्वप्रथम सरकार अपने मसौदे के साथ सार्थक सकारात्मक चर्चा करे।
5- बिना चर्चा के यूनिफार्म सिविल कोड पर चल रही बहस संविधान सम्मत नहीं है।
6- सरकारों का काम समस्याओं के समाधान का है न कि धार्मिक मसले उत्पन्न करने का।
7- यूनिफार्म सिविल कोड पर अनेक किंतु परन्तु है किंतु समाज और धार्मिक समूहों से चर्चा के बिना कोई भी धार्मिक समूह इसे अंगीकृत नहीं करेगा। क्योंकि यूनिफार्म सिविल कोड के लागू होने के बाद मुस्लिम समुदाय के निकाह व तलाक सहित महिलाओं के सम्पत्ति में अधिकार जैसे विषय क्या समाप्त हो जायेंगे अथवा वह किस विधि के अनुरूप सम्पन्न होंगे।
8- धार्मिक मामलों में मुस्लिम समुदाय के निकाह तलाक महिलाओं का सम्पत्ति में अधिकार जैसे अधिकार ही मुस्लिम एप्लीकेशन एक्ट 1937 से लेकर भारतीय संविधान में स्थापित है फिर उसके साथ यूनिफार्म सिविल कोड की आड़ में उसके साथ छेड़छाड़ की क्या आवश्यकता है?
9- बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा मे यह भी कहा था कि राज्य या केंद्र सरकार इसे लागू करने के पूर्व धार्मिक समुदाय या उनके धर्मगुरुओं से चर्चा के बाद ही इसे लागू करने का निर्णय ले इसे जबरन थोपने का प्रयास उचित नहीं होगा।
10- मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया इस सम्बंध में आपसे मुस्लिम समुदाय पर यूनिफार्म सिविल कोड लागू न करने की अपील करते हुए कहना चाहता है कि इस गम्भीर विषय पर गम्भीर चर्चा संवाद की आवश्यकता है।
अतः आपसे अनुरोध है कि इस विषय की गम्भीरता के दृष्टिगत ही अंतिम निर्णय मुस्लिम समुदाय के निकाह, तलाक उत्तराधिकार जैसे धर्म व संविधान सम्मत अधिकार के संरक्षण की अपेक्षा करते हैं। आशा है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया के निवेदन पर गम्भीरतपूर्वक संवेदनशील निर्णय करेंगे।
सादर आभार सहित।
भवदीय
(डॉ मोइन अहमद खान)
राष्ट्रीय महासचिव
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया