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पिता बनाना चाहते थे पहलवान, लेकिन बेटे मुलायम ने चुना सियासी अखाड़ा, जानें उनका सियासी उतार-चढ़ाव

लखनऊ. Mulayam Singh Yadav Death: धरती पुत्र (Dharti Putra Mulayam Singh Yadav) नाम से मशहूर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव अब इस दुनिया में नहीं रहे। मुलायम सिंह यादव की अगर बात करें तो यूपी की सियासत उनका कद दमदार राजनेता का रहा है। दशकों लंबे राजीनितक करियर में मुलायम की राजनीति ने कई उतार चढ़ाव देखे गये। लेकिन यूपी की सियासत में उनका वहीं कद हमेशा बरकरार रहा।

यहां से शुरू हुआ मुलायम का सियासी सफर
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर, 1939 को इटावा के सैफई जिले में हुआ था। किसान परिवार में जन्मे मुलायम को उनके पिता सुघर सिंह यादव पहलवान बनाना चाहते थे। इसकी तैयारी भी उन्होंने शुरू कर दी गई थी, लेकिन मुलायम की किस्मत में तो सियासी अखाड़ा लिखा था। 1954 में समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने नहर रेट आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन में तमाम युवा जुड़े, जिसमें मुलायम भी शामिल थे। इस आंदोलन से राजनीति का ककहरा सीखने वाले मुलायम ने धीरे-धीरे लोहिया के अलावा और तमाम समाजवादी नेताओं से जान-पहचान और नजदीकी बढ़ाई। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

मालती देवी थीं मुलायम की पहली पत्नी
मुलायम सिंह यादव अपने पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थे। उनके बड़े भाई रतन सिंह यादव का देहांत हो चुका था। मुलायम से छोटे हैं शिवपाल यादव (Shivpal Yadav), रामगोपाल यादव (Ramgopal Yadav) और बहन कमला देवी (Kamla Devi)। मुलायम सिंह की पहली पत्नी मालती देवी थीं। उनका मई 2003 में देहांत हो गया था। अखिलेश यादव मालती देवी के ही बेटे हैं। बाद में मुलायम सिंह यादव ने साधना यादव से दूसरी शादी की। जिनसे प्रतीक यादव उनके दूसरे बेटे हैं।

मुलायम का सियासी उतार-चढ़ाव
मुलायम सिंह यादव पहली बार साल 1967 में अपने गृह जनपद इटावा की जसवंतनगर सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी। इसके बाद से वो लगातार साल 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचते रहे। इसी दौरान साल 1977 में वे पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी बने। इमरजेंसी के दौरान जेल जाने वाले मुलायम के जीवन का अहम पड़ाव साल 1989 में सामने आया, जब उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली। 1980 में उन्होंने लोकदल के अध्यक्ष पद की कुर्सी भी संभाली थी। 1985-87 तक मुलायम जनता दल के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

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गेस्ट हाउस कांड में मुलायम पर लगे थे आरोप
1993 में यूपी के चुनाव में बसपा और सपा का गठबंधन हुआ, जिसकी बाद में जीत हुई। मुलायम मुख्यमंत्री बने, लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते बसपा ने मुलायम की सपा से किनारा कर लिया और सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इसके बाद मुलायम की सरकार अल्पमत में आ गई। इसके बाद गेस्ट हाउस कांड (Guest House Kand) को लेकर मुलायम पर मायावती (Mayawati) की जान लेने का आरोप लगा था।

जानें गेस्ट हाउस कांड के बारे में
उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2 जून, 1995 का काफी महत्वपूर्ण है। इसे अगर राजनीति का काला दिन कहा जाए, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उस दिन एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर मायावती की आबरू पर हमला करने को उतारू हो गई थी। दरअसल 1993 में सपा-बसपा ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में गठबंधन की जीत हुई और मुलायम सिंह यादव इसके मुखिया बने। लेकिन दो साल बाद आपसी मनमुटाव के चलते मायावती ने सपा से अपने रास्ते अलग कर समर्थन वापस ले लिया। मुलायम एड़ी-जोटी का जोर लगाकर मामला सुलझाने का प्रयास करते रहे। लेकिन जब अंत में बात नहीं बनी, तो नाराज सपा कार्यकर्ता और विधायक मायावती पर हमलावर हो गए। 2 जून, 1995 को जब लखनऊ स्थित मीराबाई में मायावती बसपा कार्यकर्ताओं संग बैठक कर रही थीं, तब सपा समर्थक और विधायक उनपर हमला करने को ऊतारू हो गए। हमले से बचने के लिए मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। आरोप है कि सपा नेताओं ने मायावती के साथ बदसलूकी भी की थी। उस समय गेस्ट हाउस कांड को लेकर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव, प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव और कई अन्य दिग्गज नेताओं पर मुकदमा दर्ज हुआ था। हालांकि बीते दिनों मायावती ने इस मामले से मुलायम पर दर्ज केस वापस ले लिया था लेकिन बाकियों पर मुकदमा चल रहा है। उस समय गेस्ट हाउस कांड पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था।