
लखनऊ. Mulayam Singh Yadav Death: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का आज 10 अक्टूबर 2022 को निधन हो गया। आज सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर उन्होंने 82 साल की उम्र में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल (Medanta Hospital Gurugram) में अंतिम सांस ली। मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के निधन के साथ ही उनसे जुड़े तमाम लोगों के जहन में ताजा होने लगे। कहते हैं समय सबका इतिहास लिखता है। समय ने मुलायम सिंह का भी इतिहास लिखा। जीवन भर राजनीति के अखाड़े में कभी मात न खाने वाले मुलायम ने चुपचाप हर जंग तो जीत ली। उत्तर प्रदेश की राजनीति (Uttar Pradesh Politics) में इनका कई दशकों तक बोलबाला रहा। लोहिया के आंदोलन (Lohia Andolan) से निकले इस पहलवान ने राजनीति के अखाड़े में बड़े-बड़े दिग्गजों को पटखनी देकर अपनी सियासत को कभी कमजोर पड़ने नहीं दिया। लेकिन मुलायम सिंह को साल 2017 के बाद से एक के बाद एक कई झटके लगे। साइकिल की कमान बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को देने के बाद परिवार में दरार पड़ने लगी। हालांकि 2012 से लेकर 2016 तक किसान नेता को कई मौके पर भाई शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) और बेटे अखिलेश यादव को चेतावनी देकर समझाना पड़ा। पिता से विरासत में मिली साइकिल पर अखिलेश यादव ने कब्जा कर चाचा शिवपाल और उनके समर्थकों को संगठन से बाहर कर नई पारी की शुरूआत कर दी। जिसका परिणाम यह रहा कि लगातार दो विधानसभा चुनाव (UP Vidhan Sabha Chunav) में समाजवादी पार्टी करारी हार मिली। हालांकि 2017 का विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Election) हारने के बाद मुलायम सिंह यादव ने घर की फूट को कम करने की कोशिश की पर वो पूरी तरह से नाकाम रहे।
मुलायम ने चुपचाप जीती हर जंग
जीवन भर राजनीति के अखाड़े में कभी मात न खाने वाले मुलायम ने चुपचाप हर जंग तो जीत ली, लेकिन पारिवारिक विवाद के चलते कई बार उन्हें हर मोर्चे पर हार का सामना करना पड़ा। परिवार से लेकर राजनीति में नत्थू सिंह के चेला मात खाता रहा। मुलायम ने इससे पहले राजनीतिक जीवन (Mulayam Singh Yadav Political History) में कभी हार नहीं मानी। हर जंग लड़े और जीतते चले गए। कानपुर में डीएबी कॉलेज के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अनूप सिंह के मुताबिक मुलायम सिंह यादव यूं तो बचपन से पहलवानी करते रहे हैं पर राजनीति के अखाड़े में कई दांव-पेंच उन्होंने राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह से सीखे। उन्हीं के साथ मुलायम ने कांग्रेस (Congress) विरोधी राजनीति की धार को और तीखा किया। चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) ने उनकी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जड़ें जमाने में काफी मदद की।
1967 में पहली बार चुने गए विधायक
मुलायम सन 1967 में पहली बार राम मनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) के नेतृत्व वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) (Samyukta Socialist Party) के टिकट पर विधायक चुने गए। पर लोहिया की मृत्यु के तुरंत बाद 1968 में वो चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल (Bhartiya Kranti Dal) में शामिल हो गए। बाद में संसोपा और भारतीय क्रांति दल का विलय करके भारतीय लोकदल (Bhartiya Lok Dal) बनाया गया। मुलायम सिंह ने इस पार्टी पर अपनी पकड़ मज़बूत की और 1977 में जब बीएलडी (BLD) का जनता पार्टी (Janta Party) में विलय हुआ तो मुलायम सिंह मंत्री बन गए। प्रोफेसर अनूप सिंह के मुताबिक 1989 के चुनावों में राजीव गांधी का करिश्मा उतार पर था और ये माना जा रहा था कि वो चुनाव नहीं जीत पाएंगे। ऐसे में विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh – VP Singh) ने कांग्रेस से बगावत कर दी। चुनाव के बाद जनता दल (Janta Dal) की सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई, लेकिन चुनौती तब पैदा हुई जब चंद्रशेखर (Chandrashekhar) खुद प्रधानमंत्री बनने के लिए जोड़-तोड़ करने लगे। उस वक्त के दूसरे खुर्राट नेता देवीलाल (Devilal) तब विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ थे। तब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के उभरते राजनेता थे और चंद्रशेखर के साथ खड़े थे। मगर ऐन वक्त पर मुलायम पलटे और देवीलाल के साथ चले गए। ऐसे में चंद्रशेखर टापते रह गए और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बन गए।
जब मुलायम बने यूपी के सीएम
वीपी सिंह का चुपचाप सहयोग पाकर मुलायम सिंह यादव यूपी में अपनी ताकत दिखाकर मुख्यमंत्री हो गए और उनके राजनीतिक गुरू चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजीत सिंह (Chaudhary Ajit Singh) टापते रह गए। अपने जीवन के आखिरी वक्त तक चौधरी अजीत सिंह को 1989 में मिले झटके का दर्द याद रहा। 1992 में बसपा के साथ मुलायम ने सरकार बनाई। जब बसपा नेता मायावती ने समर्थन वापस लिया तो गेस्ट हाऊस कांड (Guest House Kand) हो गया। जगदंबिका पाल (Jagdambika Pal) के नेतृत्व में एक दिन की सरकार बनवाने में भी मुलायम ही शिल्पी थे। भाजपा के सहयोग से 2003 में मुलायम ने यूपी में सरकार बनाई। जबकि भाजपा से उनका हमेशा 36 का राजनीकि समीकरण रहा। मुलायम ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) का विदेशी मूल के मुद्दे पर विरोध किया और 2008 में यूपीए एक (UPS One Government) सरकार को अल्पमत के दौरान समर्थन दिया। प्रोफेसर अनूप सिंह के मुताबिक मुलायम सिंह यादव के कभी कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया (Commander Arjun Singh Bhadauria) बहुत करीबी थे, लेकिन मुलायम ने समय आने पर उनसे चुपचाप दूरी बना ली। इसके बाद मुलायम ने जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। नए साथी मिलते गए और उनका कारवां बनता गया।