
लखनऊ. Mulayam Singh Yadav Death: सभी से अलविदा कह चुके मुलायम सिंह यादव ने चंबल और बीहड़ की कटीली जमीन पर समाजवाद का झंडा गाड़ा था। उन्होंने प्रदेश की सियासत में अपनी राजनीति का लोहा मनवाया। लेकिन 2019 की पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सुनामी ने सियासत के सुल्तान मुलायम की जमीन पर कमल का फूल खिला दिया। इटावा, फर्रूखाबाद, कन्नौज, अकबरपुर और कानपुर नगर समेत कई सीटों पर भाजपा की प्रचंड जीत हुई। समाजवादी पार्टी और बसपा के सारे धुरंधर बुरी तरह से चुनाव हार गए। यहीं तक कि यादव परिवार की बहू डिंपल यादव को भी हार झेलनी पड़ी। पर जबरदस्त पराजय की भनक मुलायम सिंह को पहले ही हो गई थी और इसी के कारण उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को जीत का आर्शीवाद पहले ही दे दिया था। आज मुलायम के निधन पर उनकी इन्हीं बातों को यादकर सभी की आंखें नम हो रही हैं।
खूब चला मोदी का जादू
महज 15 साल की उम्र में नहर आंदोलन में भाग लेने वाले मुलायम सिंह यादव ने अपनी 40 साल से ज्यादा के राजनीतिक जीवन में कई उतार-चड़ाव देखे पर हार कर फिर से खड़े हुए। 1990 के बाद इटावा, मैनपुरी, फर्रूखाबाद, कन्नौज, कानपुर नगर, अकरबपुर में हर लहर और सुनामी को मात देकर साइकिल दौड़ती रही। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ, जिसका अंदेशा सियासत के सुल्तान मुलायम सिंह यादव को पहले ही हो गया था। समाजवाद के गढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जादू सिर चढकर बोला और पूरी जमीन भगवा रंग में रंग गई।
कार्यकर्ताओं का नहीं हुआ सम्मान
समाजवादी पार्टी को बेहद करीब से जानने वाले लोगों ने बताया कि मुलायम सिंह यादव की आगवाई में 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी यूपी में उतरी। मायावती और भाजपा के किलों में मुलायम सिंह के साथ शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) समेत कई जमीनी नेताओं ने साइकिल दौड़ाई। इस दौरान मायावती सरकार ने समाजवादियों को जेल भिजवाया, पर हम नहीं हारे। मतदान के बाद प्रदेश की जनता ने समाजवादियों के पक्ष में वोट देकर पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई। हमसब ने युवा अखिलेश यादव को प्रदेश की बागडोर दी। पर कुर्सी पर बैठनें के बाद वो बड़ों व कार्यकर्ताओं का सम्मान करना भूल गए और इसी का नतीजा है कि पार्टी नीचे चली गई।
यह भी पढ़ें: पिता बनाना चाहते थे पहलवान, लेकिन बेटे मुलायम ने चुना सियासी अखाड़ा, जानें उनका सियासी उतार-चढ़ाव
गठबंधन के खिलाफ थे नेताजी
जानकारों के मुताबिक मुलायम सिंह यादव उस समय बसपा चीफ मायावती (Mayawati) के साथ गठबंधन के पूरी तरह से खिलाफ थे। पर अखिलेश यादव और प्रोफेसर रामगोपाल यादव के चलते उनकी नहीं चली। जिसका परिणाम रहा कि पार्टी का बेस वोट भी समाजवादी पार्टी से खिसक कर भाजपा के पास चला गया। तो वहीं बसपा का वोट अखिलेश यादव के साथ नहीं आया। मुलायम ने अपनी पूरी जिदंगी राजनीति मे खंपा दी। वो जमीन से जुड़े नेता थे और उन्हें भविष्य की जानकारी का एहसास पहले ही हो जाता था। जिसका इसीलिये संसद की पटल से उन्होंने इशारों में पीएम नरेंद्र मोदी की जीत की भविष्यवाणी भी कर दी थी।