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आज का दशरथ मांझी, जब तक जोड़ेंगे नहीं..तब तक छोड़ेंगे नहीं, पुल बनाकर 20 KM का रास्ता किया कम

बाराबंकी. आपने बिहार के दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) के बारे में तो सुना ही होगा। जिसने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर पहाड़ के बीचोबीच से रास्ता निकालेंगे और केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर खुद अकेले ही 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और एक सड़क बना डाली। ऐसा ही कुछ कमाल उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में भी एक शख्स ने किया है। इस शख्स ने भी कई गांव के लोगों की समस्या को देखते हुए नदी पर एक पुल बनाने की ठानी और पुल बनाकर गांव के लोगों का 20 किलोमीटर का रास्ता कम कर दिया। अब इस पुल से कई गांव के लोग आते-जाते हैं और उनका कहना है कि पुल की वजह से उनका काफी समय बच रहा है। हालांकि यह पुल एक मायने में सरकारी विकास के मखमल पर टाट का पैबंद भी कहा जाएगा, क्योंकि पक्का और मजबूत पुल बनाने जो काम सरकार को करना चाहिये था, उसे गांव के एक शख्स ने अपनी क्षमता के अनुसार किया। हालांकि यह पुल लोगों के लिये खतरनाक भी है, क्योंकि यह लकड़ी का बना है और नीचे नदी बह रही है। ऐसे में कोई हादसा भी हो सकता है, लेकिन लोग 20 किमी ज्यादा सफर करने से बेहतर विकल्प इस पुल से जाने को मानते हैं।


नहीं बन का पुल
केंद्र और प्रदेश की सरकारें गांव-देहात में सड़कों और पुलों का जाल बिछाने के बड़े-बड़े दावे करती हैं। योजनाओं की भरमार भी है। सड़कों का निर्माण भी हो रहा है। इसके बावजूद बाराबंकी जिले के ग्रामीण इलाके में मौजूद एक लकड़ी का पुल विकास का आइना दिखा रहा है। नदी के ऊपर बना लकड़ी का पुल लोगों के लिए जानलेवा बना हुआ है। क्योंकि इसी पुल के सहारे स्कूली बच्चे और ग्रामीण आते-जाते हैं और यहां कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। लेकिन जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते अभी तक इस पुल का निर्माण नहीं हो सका।

टूटा सब्र का बांध, बना डाला लकड़ी का पुल
जहां एक ओर केंद्र और प्रदेश सरकार हर तरफ विकास की बयार के दावे करती है, तो वहीं दूसरी तरफ जिले का एक गांव इस बात की तस्‍दीक करता है कि नेता केवल वोट मांगते समय लोगों को बड़े-बड़े सपने ही दिखाते हैं। क्योंकि बाराबंकी जिले (Barabanki) की तहसील रामसनेही घाट के शाहपुर गांव की हकीकत देखकर कोई भी यही कहेगा कि विकास नाम की चीज तो यहां से कोसों दूर है। दरअसल इस गांव से गुजरी कल्याणी नदी के ऊपर ग्रामीण दशकों से पुल की मांग करते-करते जब थक गए तो उनमें से एक शख्स के सब्र का बांध टूट गया। राम मगन नाम के एक शख्स ने पुल बनाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई और नदी के उपर एक लकड़ी का पुल बना डाला। वहीं अब राम मगन की मौत के बाद उसका बेटा लवकेश बिहार के दशरथ मांझी की तरह मिसाल बनकर पुल बनाने की जिम्मेदारी उठाये हुए हैं। यह पुल अब लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है। यह पुल बारिश के दिनों में हटा दिया जाता है।

20 किमी कम की दूरी
गांव की कल्याणी नदी लोगों का कल्याण तो कर रही है लेकिन सरकारें जनता का कल्याण करने को राजी नहीं। इस क्षेत्र के ग्रामीणों को इसी बात का दुख है कि वह लोग अब भी मूलभूत सुविधाओं से काफी दूर हैं। यहां के ग्रामीणों ने बताया कि उन लोगों ने नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों से लगातार पुल की मांग की, लेकिन कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। यह पुल बाराबंकी की दरियाबाद विधानसभा को अयोध्या जनपद की रुदौली विधानसभा से भी जोड़ता है, साथ ही 50 से 60 गांवों को जिला मुख्‍यालय से जोड़ता है, जिसके चलते रोज करीब हजारों लोग उसपर से गुजरते हैं। आलम यह है कि इन गांवों के लोगों जिला मुख्यालय जाने के लिये करीब 20 किलोमीटर घूमकर आना पड़ता है। वहीं लोगों की परेशानी को देखते हुए गांव के लवकेश ने अपने खर्चे और मेहनत से नदी पर एक लकड़ी के पुल का निर्माण किया। वहीं जिस लवकेश ने यह पुल बनाया है, अब उसकी रोजी-रोटी भी इसी से चल रही है।

घर का चलता है खर्च
ग्रामीणों ने बताया कि प्राथमिक विद्यालय के छात्र, किसान और अन्‍य ग्रामीण मजबूरी में अपनी जान जोखिम में जालकर इस पुल से गुजरते हैं, क्योंकि अगर वह घूमकर दूसरी तरफ से तहसील मुख्यालय की तरफ जाएंगे तो उन्हें करीब किलोमीटर घूमकर जाना पड़ेगा। जिसमें समय और पैसे दोनों ज्यादा खर्च होंगे। लेकिन इस पुल ने यह दूरी काफी कम कर दी है। वहीं पुल बनाने वाले लवकेश ने बताया कि इस पुल से मोटरसाइकिल लेकर गुजरने वालों से 10 रुपए, साइकिल वालों से 5 रुपए और पैदल वालों से 3 रुपए लेते हैं। इसके अलावा जो लोग रोज इस पुल से आते-जाते हैं, उनसे 6 महीने में अनाज मिलता है। इस तरह से उसके परिवार का भी खर्च चलता है।