
मथुरा. Kokilavan Shani Dev Mandir. शनिदेव की वक्रदष्टि से हर कोई भय खाता है, लेकिन शनिदेव की सच्चे मन से अराधना की जाए, तो उनकी कृपा किसी का भी कल्याण कर सकती है। इसी आस्था का एक प्रतीक है कोकिलावन शनिदेव मंदिर, जहां की परिक्रमा और शनिदेव के दर्शन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। और उनकी वक्र दृष्टि नहीं पड़ती। और यदि वक्र दष्टि पड़ी है, तो वह हट जाती है। उत्तर प्रदेश के मथुरा के कोसीकलां गांव के पास शनिदेव का यह सिद्ध धाम है। मुख्य मंदिर से पहले शनिदेव की एक विशाल मूर्ति बनी हुई, जो काफी दूरी से ही दिख जाती है। उससे कुछ ही दूरी पर सैकड़ों वर्ष पुराना यह मंदिर है। जिसको लेकर एक पुरानी मान्यता प्रचलित है।
क्या है कोकिलावन की कहानी-
माना जाता है कि द्वापरयुग में श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था तब सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए आए थे। शनिदेव भी अपने आराध्य भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप को देखने पहुंचे थे। लेकिन उन्हें यशोदा मैया ने रोक दिया गया था, ताकी उनकी वक्र दृष्टि श्रीकृष्ण पर न पड़े। तब दुखी होकर शनिदेव नंद गांव के पास वन में तपस्या करने लगे। तपस्या से खुश होकर भगवान श्री कृष्ण ने कोयल के रूप में शनिदेव को दर्शन दिए। साथ ही कहा कि शनिदेव वहीं पर विराजमान हों और जो भी व्यक्ति कोकिलावन की श्रद्धा और भक्ति के साथ परिक्रमा करेगा व शनिदेव के दरर्शन करेगा उस पर शनि की वक्र दृष्टि नहीं पड़ेगी बल्की उनकी इच्छा पूर्ण होगी। उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। श्रीकृष्ण भगवान ने शनिदेव को कोयल के रूप में दर्शन दिए थे।इसी वजह से इस स्थान का नाम कोकिला वन पड़ा। भक्तगण यहां किसी भी प्रकार की परेशानी लेकर आते हैं तो शनिदेव उसे दूर करते हैं।
श्रीकृष्ण के दर्शन करने आने वाले भक्त कोकिलावन जरूर आते हैं-
इसी उम्मीद के साथ यहां हर शनिवार को दूर-दूर से सैकड़ों भक्तगण शनिदेव के दर्शन के लिए आते हैं। शनिवार के दिन यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लगता है। देश-विदेश से कृष्ण दर्शन के लिए मथुरा आने वाले हजारों श्रद्धालु यहां आकर शनिदेव के दर्शन जरूर करते हैं, फिर कोकिलावन धाम की सवा कोसीय परिक्रमा को पूरा करते हैं। उसके बाद सूर्यकुंड में स्नान कर शनिदेव की प्रतिमा पर तेल आदि चढ़ाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं।