
दिल्ली. Jersey Movie Review. साउथ की फिल्मों का इन दिनों जलवा है। बीते दिनों रिलीज हुई फिल्में आरआरआर, पुष्पा और केजीएफ ने ये साबित कर दिया। वहीं साउथ फिल्म के रीमेक भी फैशन से बाहर नहीं हैं। लोगों ने भी उन्हें खूब पसंद किया और करेंगे भी। गजनी, राउडी राठौर, हॉलीडे, कबीर सिंह जैसी तमाम फिल्मों ने ये साबित किया। हालांकि बच्चन पांडे ने लोगों को निराश किया। लेकिन सफल फिल्मों की लिस्ट में एक नया नाम जर्सी जुड़ गया है। तेलुगु फिल्म ‘नानी’ की ये रीमेक हैं। जर्सी हूबहू उसी नानी जैसी है, लेकिन इमोशन लेवेल बिल्कुल फ्रेश है।
कहानी है अर्जुन (शाहिद कपूर) की जो एक शानदार क्रिकेटर है, लेकिन अपने करियर के शानदार पड़ाव में ही वो क्रिकेट छोड़ देता हैं। अब वो सरकारी नौकरी करता है। उसकी पत्नी है विद्या (म्रुनल ठाकुर) , जो एक होटल में काम करती हैं। एक बेटा है, जो उसे एक हीरो मानता है। सब कुछ ठीक चल रहा होता है कि अचानक अर्जुन को नौकरी से निकाल दिया जाता है। अब वो घर में बैठा है, जहां की आर्थिक स्थिति पूरी तरह बिगड़ चुकी है। अर्जुन 36 साल का हो चुका है। उसकी महत्वकांक्षाएं मर चुकी हैं। पत्नी से लड़ाई झगड़े के बीच उसे बेटे में सुकून मिलता है। पर फिर कुछ होता है, जिससे वो वापस क्रिकेट का रुख करता है। अर्जुन कैसे कमबैक करता है। 36 साल की उम्र में क्या उसे क्रिकेट टीम में जगह मिलती हैं, ये सब कुछ और कई सवालों के जवाब देती है फिल्म जर्सी।
हाल में हॉट स्टार पर रिलीज हुई ‘कौन प्रवीन तांबे’ में एक 36 साल की उम्र के खिलाड़ी के कमबैक का प्लॉट तो यहां मिलता जुलता है, लेकिन दोनों ही एक दूजे से जुदा है। कैरेक्टर्स की घटनाएं, अलग-अलग हैं, लेकिन फिल्म के इमोश्नल कनेक्ट एक जैसा है। इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि लगातार आ रही स्टोर्ट्स ड्रामा और बायोपिक खासतौर पर क्रिकेट पर फिल्मों को सफलता मिल रही हैं। जर्सी को भी मिलने की उम्मीद है। क्योंकि कई बातें यहां पर फिट बैठते हैं। फिल्म को ज्यादा ड्रामाटाइज नहीं किया गया है। जिंदगी में ऊंच नीच के पड़ाव से हर कोई गुजरा होगा। क्रिकेटर्स के साथ भी ऐसा ही हैं। कई खिलाड़ी होंगे जो जान लगा देते होंगे, टूटते होंगे और फिर खड़े होते होंगे। जर्सी उन्हीं में से किसी एक की कहानी कही जा सकती है। निर्देशक तेलुगु फिल्म वाले ही हैं यानी गौतम तिन्ननुरी। जिन लोगों ने नानी देखी होगी वो उनके काम को जर्सी से आसानी से रिलेट कर पाएंगे। फिल्म में एक खिलाड़ी, स्पोर्ट्स और मैदान में रणनीति के अलावा, गौतम ने एक पिता और बेटे के रिश्ते को बहुत ही खूबसूरती के साथ दर्शाया है। अर्जुन के किरदार का बिल्डअप इतना शानदार है कि 170 मिनट लंबी फिल्म कब खत्म हो जाती हैं आपको पता ही नहीं चलता, हालांकि काट-छाट की पूरी गुजाइंश थी।
कलाकारों की बात करें, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि शाहिद कपूर ने फिल्म में ऐसा शतक लगाया है कि वो आने वाले कई सालों तक याद रखा जाएगा। यादगार सीन्स कई, लेकिन ट्रेन के पास वाला शाहिद का सीन आपको अंदर तक महसूस होगा। गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन सब कुछ बराबार मात्रा में उन्हें पेश किया है। कोच के किरदार में पंकज कपूर और बेटे के रोल में रॉनित कामरा के साथ उनकी ट्यूनिंग देखने लायक है। शानदार एक्टिंग स्किल्स के धनी पंकज कपूर इस रोल में भी शानदार हैं, लेकिन शाहिद कपूर पर वो हावी नहीं होते हैं। रोनित कामरा अपनी मासूमियत से कई सीन्स में दिल जीत लेते हैं। म्रुनल ठाकुर का कैरेक्टर बिल्कुल भी सीमित नहीं है। बल्कि अर्जुन जो करता हैं उसके पीछे जो असर है वो उनके किरदार का ही है। जो दिखाती है कि जिंदगी जीना उतना आसान नहीं, जितना लगता है। म्रुनल अपने अभिनय से इसे प्रभावशाली बनाती हैं।
फिल्म के दिए जाते हैं 3.5 स्टार्स, जर्सी हंसाती है, रुलाती है और जश्न मनाने का मौका देती है।