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Insurance के बारे में क्या ये बातें जानते हैं आप? जानें- जीवन बीमा का पूरा इतिहास

लखनऊ. Insurance- भारत में धीरे-धीरे लोगों को लाइफ इंश्योरेंस का महत्व समझ में आ रहा है। बड़ी संख्या में लोग बीमा करा रहे हैं। फिर वह चाहे Life Insurance हो, Health Insurance हो या फिर General Insurance या फिर किसी और तरीके का बीमा। भारतीय जीवन बीमा निगम के अलावा कई प्राइवेट कंपनियां भी इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। आखिर जीवन बीमा है क्या? इसकी शुरुआत कैसे आइये इस बारे में विस्तार से जान लेते हैं-

सदियों से बीमा का है प्रचलन
बीमा का कॉन्सेप्ट सदियों से चला आ रहा है। 300 ईसा पूर्व से बीमा किसी न किसी रूप में हमारे बीच मौजूद रहा है। सबसे पहले इसे बेबोलोनियन व्यापारी इसका इस्तेमाल करते थे। वह सामान के चोरी होने या फिर खो जाने के जोखिम से बचने के लिए ऋणदाताओं को अतिरिक्त रकम देते थे, ताकि उस सूरत में उनसे ऋण की वसूली न हो। ऐसे बीमा को ‘बॉटमरी लोन्स’ कहा जाता था। बेबोलोनियन की तरह बरुच सूरत के व्यापारी इसी तरह से बीमा लेते थे। चीनी व्यापारी और रोड्स के निवासी भी इसी पद्धति का इस्तेमाल करते थे। वे मानते थे कि यदि नाव के साथ दुर्भाग्य से कुछ हो भी जाता है तो नुकसान आंशिक ही होगा। ऐसे में होने वाले नुकसान को बांट कर घटाया जाता है।

बीमा का मॉडर्न कॉन्सेप्ट

  • आधुनिक बीमा व्यवसाय की शुरुआत लंदन में लॉयड्स कॉफी हाउस से मानी जाती है।
  • 1706 में एमिकेबल सोसाइटी फॉर पर्पेचुअल इंश्योरेंस को दुनिया की पहली जीवन बीमा कंपनी माना जाता है।
  • दि ओरिएंटल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड भारत में स्थापित पहली बीमा कंपनी थी। यह इंग्लिश कंपनी थी।
  • ट्रिटन इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड भारत में स्थापित पहली गैर जीवन बीमा कंपनी थी।
  • बॉम्बे म्युचुअल इंश्योरेंस सोसाइटी लिमिटेड पहली भारतीय इंश्योरेंस कंपनी थी, जो 1870 में मुंबई में बनी थी।
  • 1906 में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की स्थापना की गई थी जो अब भी व्यवसाय में है। यह भारत की सबसे पुरानी बीमा कंपनी है।

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बीमा अधिनियम 1938 का कानून आज भी जारी है
वर्ष 1912 में बीमा व्यवसाय को विनियमित (regulate) करने के लिए लाइफ इंश्योरेंस कंपनीज एक्ट और प्रोविडेंट फंड एक्ट पारित किये गये। 1912 के जीवन बीमा अधिनियम के तहत यह अनिवार्य हो गया था कि प्रीमियम दर तालिकायें और कंपनियों के आवधिक मूल्यांकनों को एक्चुअरी (बीमांकन) द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए। इस अधिनियम के बावजूद भारतीय और विदेशी कंपनियों के बीच भेदभाव और विषमता जारी रही। इसके बाद 1938 में बीमा अधिनियम आया। बीमा कंपनियों के संचालन को रेग्युलेट करने के लिए यह पारित किया गया पहला कानूना था जो आज भी जारी है। बीमा कानून के प्रावधानों के तहत सरकार द्वारा बीमा नियंत्रक की नियुक्ति की गई थी।

जीवन बीमा का राष्ट्रीयकरण
जीवन बीमा व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण 1 सितंबर 1956 को किया गया था और तब भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की स्थापना की गई। उस समय भारत में 170 कंपनियां और 75 प्रोविडेंट फंड सोसायटियां जीवन बीमा का व्यवसाय कर रही थीं। 1956 से 1999 तक भारत में जीवन बीमा का व्यवसाय करने का अधिकार सिर्फ एलआईसी के पास ही थी।

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गैर जीवन बीमा का राष्ट्रीयकरण
1972 में जनरल इंश्योरेंस बिजनेस नेशलाइजेशन एक्ट (GIBNA) के पारित होने के साथ ही गैर जीवन बीमा का भी राष्ट्रीयकर कर दिया गया। और जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (जीआईसी) और उसकी चार अधीनस्थ कंपनियों की स्थापना की गई। इनमें गैर जीवन बीमा का व्यवसाय कर रहे 106 बीमाकर्ताओं को विलय कर दिया गया।

मलहोत्रा समिति और आईआरडीएआई
बीमा कारोबार में स्पर्धा को बढ़ाने व विकास के लिए बदलावों का सुझाव देने के लिए 1993 में मलहोत्रा समित गठित की गई। एक साल बाद यानी 1994 में समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। 1997 में इंश्योरेंस रेग्युलेटरी अथॉरिटी यानी आईआरए की स्थापना की गई। 1999 में बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम (आईआरडीएआई) आस्तित्व में आया। एक साल बाद यानी 2000 में बीमा नियायक व विकास प्राधिकरण का गठन अधिनियम (आईआडीए) का गठन हुआ। वर्ष 2014 में आईआरडीएआई फिर से आईआरडीए हो गया।

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