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कांग्रेस को विदेशी मुस्लिमों से प्रेम, दलित मुसलमानों को हक से किया वंचित, अब राष्ट्रपति मुर्मू से की ये बड़ी मांग

बाराबंकी. President Droupadi Murmu: बाराबंकी में आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज (All India Pasmanda Muslim Mahaj) के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने एक बार फिर कांग्रेस (Congress) पर जोरदार हमला बोलते हुए उसे दलित मुस्लिम विरोधी करार दिया है। वसीम राईन ने देश की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को जिलाधिकारी के माध्यम से एक पत्र भेजा है। जिसमें उन्होंन आरोप लगाया है कि कांग्रेस से ज्यादा भेदभाव की राजनीति शायद ही किसी ने की हो और अंग्रेजों की तर्ज पर फूट डालो और राज करो इनका मूल मंत्र रहा। वरना आज दलित मुसलमान और ईसाई भी अनुसूचित जाति में शामिल होकर समानता के अधिकार का डंका बजा रहा होता। उन्होंने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति से मांग की है कि हिन्दू, सिख और बौद्ध की तरह दलित मुस्लिम और ईसाई को भी अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए, ताकि समानता के अधिकार को मूर्त रूप दिया जा सके और इन जातियों को भी उनके हक और हुकूक हासिल हो सकें।

कांग्रेस दलित मुस्लिम विरोधी
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा है कि दलित मुस्लिम विरोधी कांग्रेस को सिर्फ विदेशी अशराफ मुस्लिम हमेशा रास आते रहे हैं। विशुद्ध दलित मुसलमान को उनके हक से वंचित रखा गया। आर्टिकल 341/3 बोर्ड में सात लोग थे, जिसमें पांच विदेशी मुसलमान थे। इसीलिए पसमांदा मुसलमानों के साथ ये नइंसाफी हुई। उन्होंने राष्ट्रपति को भेजे गए ज्ञापन में कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 25 में साफ लिखा है कि भारत में बसने वाला इंसान, चाहे वह किसी धर्म, जाति, लिंग, नस्ल का हो उसके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। मगर आजादी के बाद 10 अगस्त 1950 को राष्ट्रपति अध्यादेश शेड्यूल कास्ट 341 के पैरा 3 के तहत सिर्फ हिंदू दलित को अनुसूचित जाति का लाभ दिया गया। दूसरे धर्म के मानने वालों को अनुसूचित जाति का लाभ लेने से वंचित कर दिया गया है। सिखों को 1956 में और बौद्धों को 1990 में उसका लाभ मिला लेकिन मुसलमान और ईसाई आज तक इस लाभ से वंचित हैं।

पसमांदा समाज की मांग
उन्होंने कहा कि क्या यही सामान नागरिकता का संदेश है? यदि ऐसा है तो समानता में असमानता मौलिक अधिकार का हनन है और जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 25 की खिलाफ वर्जी और संविधान विरुद्ध है। जो हिंदुस्तान को एक सेक्यूलर और लोकतांत्रिक मुल्क होने की जमानत देता है। वसीम राईन ने कहा कि मांगों की प्रतिपूर्ति राष्ट्रपति के स्वविवेक पर आधारित है। इसे स्वीकार किये जाने से सभी पसमांदा समाज के नागरिकों की सच्ची समाजवादी सहानुभूति और विचारों का प्रकटीकरण तो होगा। साथ ही दलित मुसलमानों और दलित दलित ईसाइयों की तरक्की का रास्ता खुलेगा। इसलिये हमारी मांग की स्वीकृति और संस्तुति प्रदान की जाए।